हल्दीराम की सफलता की कहानी (Haldiram’s Inspiring Story or Success Story Of Vishan Ji Agrawal Who Started Haldirams in hindi)
Story of Haldiram: गुलाम भारत में खुली एक छोटी सी दुकान कैसे बनी आजाद भारत का नंबर वन ब्रांड?
हल्दीराम के प्रोडक्ट्स लगभग हर घर में इस्तेमाल किए जाते हैं. वहीं किसी भी पार्टी में नाश्ते के तौर पर लगाई जाने वाली नमकीन बिना हल्दीराम के अधूरी सी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज़ादी से पहले हल्दीराम की शुरुआत एक छोटी सी दुकान के रूप में हुई. फिर आज़ादी के बाद कामयाबी के ऐसे झंडे गाड़े कि नंबर-1 ब्रांड बन गया.
हर सफल कहानी के पीछे बहुत सारी मेहनत छुपी होती है और हर सफल व्यापार के पीछे भी किसी व्यक्ति विशेष का विशेष योगदान जुड़ा होता है. किसी भी बड़ी कंपनी की शुरुआत बहुत छोटे लेवल पर ही होती है और किसी परिवार का कोई व्यक्ति ही आने वाली पीढ़ियों को कोई खास विरासत देकर जाता है. इसी तरह की एक कहानी भारतीय प्रसिध्द फूड ब्रांड हल्दीराम की भी है, हल्दीराम भुजियाँ सेव, हल्दीराम की सोहन पपड़ी और अन्य कई प्रकार के नमकीन और स्नेक्स का स्वाद हमारी जुबान पर चढ़ा हुआ है. परंतु यह शुरुआत से ही इस तरह का मशहूर ब्रांड नहीं था, बल्कि यह भारत के एक शहर बीकानेर में एक छोटे से व्यापारी द्वारा शुरू की गई एक छोटी सी दुकान थी, जिसने आज परिवार के सदस्यों की मेहनत की बदोलत ना केवल खुद करोड़ो का व्यापार स्थापित किया, बल्कि अन्य कई लोगों को भी रोजगार दिया. हमारे इस आर्टिकल में हम हल्दीराम के इतिहास, उसके विकास की कहानी और वर्तमान स्थिति के संबंध में संपूर्ण जानकारी आप तक पंहुचाने की कोशिश कर रहे है, जिससे आप भी इससे प्रोत्साहन प्राप्त कर सके.
हल्दीराम का इतिहास (Haldiram’s History) –
हल्दीराम जो आज एक प्रमुख मिठाई और नमकीन निर्माता कंपनी है, मुख्यतः नागपुर में स्थापित है. हल्दीराम के आज की तारीख में 100 से अधिक उत्पादो का निर्माता और विक्रेता है, परंतु इसकी कहानी भारतीय आजादी के पूर्व साल 1937 में शुरू हुई थी, इस समय गंगाविशन अग्रवाल नामक एक व्यक्ति ने अपने शहर बीकानेर राजस्थान में एक नाश्ते की दुकान शुरू की थी. यह वास्तव में इनके पिता श्री तनसुखदास जी के द्वारा शुरू किया गया भुजियाँ सेव का व्यापार था, परंतु इसका नाम इनके बेटे गंगाविशन जी के इसी छोटे से सेटअप के जरिये बना. इस व्यापार को इसके आगे बढ़ाने का श्रेय तनसुख जी के छोटे बेटे रामेश्वर जी को जाता है, इन्होने ही इस भुजियाँ सेव के व्यापार को आगे बढ़ाते हुये दक्षिण भारत के कलकत्ता में हल्दीराम भुजियावाला के नाम से एक दुकान शुरू करी. और यह नाम और दुकान हल्दीराम की सफलता की कहानी के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ.
वर्तमान में हल्दीराम के मैन्यूफेक्चरिंग प्लांट नागपुर, कोलकाता, दिल्ली और बीकानेर आदि जगह पर स्थित है. इसके अलावा हल्दीराम के स्वयं के रीटेल चेन स्टोर और कई रेस्टोरेंट नागपुर और दिल्ली में भी है. भारत के अलावा अब इस कंपनी के उत्पाद अन्य कई देशो जैसे यूनाइटेड किंगडम, श्रीलंका, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरटेस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड, जापान और थायलैंड आदि देशो में भी निर्यात होते है.
हल्दीराम ने अपना पहला मेन्यूफेक्चरिंग प्लांट कलकत्ता में डाला था, इसके बाद साल 1970 में कंपनी का अन्य और बड़ा प्लांट दिल्ली में स्थापित किया गया. इसके बाद भारत की राजधानी दिल्ली में इसका एक अन्य प्लांट डाला गया, 1990 में दिल्ली में स्थापित हल्दीराम का यह प्लांट एक रीटेल स्टोर भी है. साल 2003 में हल्दीराम ने अपने उपभोक्ताओं के लिए कनविनियन्स फूड बनाने की प्रक्रिया शुरू की.
साल 2014 में ट्रस्ट रिसर्च एडवाइजरी द्वारा तैयार की गई, एक रिपोर्ट के मुताबिक हल्दीराम भारत की सबसे भरोसेमंद ब्राण्ड्स में 55 वे नंबर पर था.
हल्दीराम के उत्पाद (Haldiram’s Products) –
हल्दीराम के अलग-अलग तरह के कुल 400 उत्पाद है, इस तरह एक छोटे से शहर मे भुजियाँ सेव से शुरू करके सैकड़ो उत्पाद की रेंज को अपनी ब्रांड में शामिल करना एक दिन का काम नहीं इसके लिए इस परिवार को कई साल लग गए. इन सैकड़ो उत्पादो में नमकीन, वेस्टर्न स्नेक्स, भारतीय मिठाईया, कूकिस, पापड़ और आचार शामिल है. साल 1990 से कंपनी ने तैयार खाद्य उत्पादो (रेडी-टु-ईट फूड) का उत्पादन भी शुरू किया. आलू से निर्मित पदार्थो को बनाने के लिए विदेश से मशीनरी मँगवाई गई और इस क्षेत्र में भी कंपनी द्वारा बेहतर उत्पाद दिये गए.
बीकानेर के एक बनिया परिवार की कहानी
शुरुआत बीकानेर के एक बनिया परिवार से होती है. नाम तनसुखदास, जिनकी मामूली सी आमदनी से किसी तरह परिवार का गुजारा हो रहा था. आज़ादी के करीब 50-60 साल पहले वो अपने परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे. तनसुखदास के बेटे भीखाराम अग्रवाल नए काम की तलाश में थे. उन्होंने अपने और अपने बेटे चांदमल के नाम पर “भीखाराम चांदमल” नामक एक दुकान खोली. उन दिनों बीकानेर में भुजिया नमकीन का स्वाद लोगों को काफी पसंद आ रहा था. उन्होंने भी भुजिया नमकीन बेचनी चाही. भीखाराम ने भुजिया बनाने की कला अपनी बहन ‘बीखी बाई’ से सीखी. उनकी बहन ने अपने ससुराल से भुजिया बनाना सीखा था. बीखी जब भी अपने मायके आती तो भुजिया साथ लेकर आतीं.
उनके मायके वाले उस भुजिया को काफी पसंद करते थे. बहरहाल, भीखाराम ने भी भुजिया बनाकर अपनी दुकान में बेचना शुरू कर दिया. लेकिन उनकी भुजिया बाज़ार में बिकने वाली भुजिया की तरह साधारण थी. बस किसी तरह उनकी रोजी-रोटी चल रही थी.
हल्दीराम बचपन से ही बड़े मेहनती थे, लेकिन...
फिर सन् 1908 में भीखाराम के घर उनके पोते गंगा बिशन अग्रवाल का जन्म हुा. उनकी माता उन्हें प्यार से हल्दीराम कह कर पुकारती थीं. जब हल्दीराम का जन्म हुआ तो उनके दादा की उम्र महज 33 साल थी. उस ज़माने में जल्दी शादी हो जाया करती थी. खैर बचपन से ही हल्दीराम ने घर में नमकीन बनते देखी.
छोटी सी उम्र में ही वे घर व दुकान के कामों में हाथ बटाने लगे. वे काम करने में कभी नहीं हिचकिचाते थे. उनके अंदर सबसे अच्छी खूबी यह थी कि वे किसी काम को बड़ी मेहनत व लगन से जल्दी सीख लेते थे. उन्होंने जल्द ही भुजिया बनाना सीख लिया. महज 11 साल की उम्र में हल्दीराम की शादी चंपा देवी से हो गई.
शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ गईं. हल्दीराम ने अपने दादा की भुजिया वाली दुकान पर बैठना शुरू कर दिया. उनकी भुजिया बाज़ार में बिकने वाली भुजिया से कुछ ख़ास नहीं थी. वे भुजिया के व्यापार को बढ़ाना चाहते थे. इसके लिए उन्हें कुछ अलग करने की जरूरत थी. ऐसे में हल्दीराम ने अपनी भुजिया के स्वाद को बढ़ाने के लिए कुछ बदलाव किया. उसमें उन्होंने मोठ की मात्रा को बढ़ा दिया. उस भुजिया का स्वाद उनके ग्राहकों को काफी पसंद आ गया. उनकी भुजिया बाज़ार में बिकने वाली भुजिया से काफी जायकेदार और अलग थी. समय के साथ परिवार बढ़ता रहा. पारिवारिक झगड़े भी उन्हें परेशान करने लगे थे. हल्दीराम ने अंत में परिवार से अलग होने का फैसला ले लिया. उन्हें पारिवारिक व्यापार से कुछ नहीं मिला.
एक्सपेरिमेंट ने बदल दी किस्मत
परिवार से अलग होने के बाद हल्दीराम ने बीकानेर में साल 1937 में एक छोटी सी नाश्ते की दुकान खोली. जहां बाद में उन्होंने भुजिया बेचना भी शुरू कर दी. वह इसके जरिए मार्केट में अपना नाम जमाना चाहते थे. कहा जाता है कि हल्दीराम हमेशा अपनी भुजिया का स्वाद बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ बदलाव या एक्सपेरिमेंट करते रहते थे.
अभी तक मार्केट में लोगों ने जिस भुजिया का स्वाद चखा था वो थोड़ी नरम, मोटी और गठिये के समान थी. इस बार उन्होंने उसके रूप को ही बदल डाला. हल्दीराम ने एक दम पतली भुजिया बना डाली. ये बहुत ही चटपटी और क्रिस्पी थी. इस तरह की भुजिया अब तक मार्केट में नहीं आई थी.
जब लोगों ने हल्दीराम की इस भुजिया का स्वाद चखा तो उन्हें काफी पसंद आया. उनकी चटपटी और स्वाद से भरपूर भुजिया खरीदने के लिए दुकान के सामने लाइन लगने लगी. पूरे शहर में उनकी दुकान ‘भुजिया वाला’ के नाम से पहचानी जाने लगी थी. बाद में उन्होंने अपनी दुकान का नाम अपने नाम पर ‘हल्दीराम’ रख दिया.
हल्दीराम का व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा था. भुजिया के साथ कई प्रकार की नमकीन बनने लगी थी. समय के साथ उनके प्रोडक्ट्स की मांग ज्यादा होने लगी. इसी के साथ ही हल्दीराम अभी भी अपनी भुजिया में बदलाव करने में लगे रहते थे. इस बार उन्होंने एक नई योजना बनाई. ‘भुजिया बैरेंस’ के लेखक पवित्र कुमार बताते हैं कि गंगा बिशन ने बेसन भुजिया में मोठ मिलाने के साथ पहले के मुकाबले उसे पतला कर दिया.
उनके इस बदलाव से उसका स्वाद बढ़ने के साथ उसका रूप भी बदल गया. दूर-दराज तक घर-घर पहुंचाने के लिए हल्दीराम ने उस भुजिया का नाम ‘डूंगर सेव’ रखा. उन्होंने अपनी भुजिया का नाम बीकानेर के मशहूर और लोकप्रिय महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर रखा था. जिससे उनकी भुजिया की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी.
बीकानेर से कोलकाता और दिल्ली तक राज किया
साल 1941 तक हल्दीराम की नमकीन का स्वाद बीकानेर व उसके आसपास के लोगों को काफी पसंद आने लगा था. हल्दीराम अपने व्यापार को अब पूरे देश में फैलाना चाहते थे. एक बार वो कोलकाता में एक शादी में शिरकत होने पहुंचे. वे अपने साथ भुजिया लेकर गए थे. उनकी भुजिया का स्वाद उनके रिश्तेदारों और दोस्तों को काफी पसंद आया.
उन्होंने हल्दीराम को कोलकाता में एक दुकान खोलने को कहा. उन्हें यह सुझाव काफी पसंद आया. हल्दीराम ने एक ब्रांच कोलकाता में खोल दी. आगे उनके पोते शिव कुमार और मनोहर ने उनके कारोबार को संभाला. उन्होंने कारोबार को पहले नागपुर और फिर दिल्ली तक पहुंचाया. साल 1970 में पहला स्टोर नागपुर में खोला गया.
वहीं साल 1982 में देश की राजधानी दिल्ली में दूसरा स्टोर खोला गया. दोनों जगहों पर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स लगाए गए. इसके बाद पूरे देश में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स बिकने लगे थे. देखते ही देखते हल्दीराम की मांग विदेशों में भी होने लगी. अब देश के साथ विदेशों में भी हल्दीराम ने अपना व्यापार फैला दिया. उनके प्रोडक्ट्स की क्वालिटी और स्वाद ने कंपनी को नंबर वन ब्रांड बना दिया.
कंपनी को लगा झटका, बावजूद नंबर वन ब्रांड बनी
हल्दीराम का ब्रांड समय के साथ तरक्की कर रहा था. साल 2003 में हल्दीराम अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स का निर्यात शुरू कर दिया था. आज करीब 80 देशों में इसके प्रोडक्ट्स का निर्यात किया जाता है.
फिर साल 2015 में कंपनी को बड़ा झटका लगा. अमेरिका ने हल्दीराम के निर्यात पर रोक लगा दी. उसका कहना था कि हल्दीराम अपने प्रोडक्ट्स में कीटनाशक का इस्तेमाल करता है. जिसकी वजह से हल्दीराम के प्रोडक्ट्स पर रोक लगा दी गई. बावजूद इसके कंपनी के बिजनेस पर कुछ ख़ास असर नहीं पड़ा. पूरे विश्व में उसके प्रोडक्ट्स ने अपनी एक अलग खास पहचान बनाई.
आगे कंपनी के कारोबार को भौगोलिक आधार पर देश के तीन हिस्सों में बांट दिया गया. ताकि कंपनी अधिक से अधिक ग्राहकों तक आसानी से पहुंच सके. दक्षिण और पूर्वी भारत का व्यापार कोलकाता स्थित ‘हल्दीराम भुजियावाला’ के पास है. वहीं पश्चिमी भारत का व्यापार नागपुर में ‘हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल’ के पास है. वहीं उत्तरी भारत का व्यापार दिल्ली में ‘हल्दीराम स्नैक्स एंड एथनिक फूड्स’ के पास है.
इन तीनों में सबसे बड़ी दिल्ली की कंपनी है. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2013-14 के बीच हल्दीराम का दिल्ली वाली हल्दीराम कंपनी का रेवेन्यू 2100 करोड़ रूपये था. वहीं नागपुर वाली कंपनी का सालाना रेवेन्यू 1225 करोड़ और नागपुर वाली कंपनी का सालाना मुनाफा 210 करोड़ रुपए था. वहीं साल 2019 में हल्दीराम का सालाना रेवेन्यू 7,130 करोड़ रुपए था.
एक रिपोर्ट के अनुसार, हल्दीराम के प्रोडक्ट्स बनाने के लिए सालाना 3.8 अरब लीटर दूध, 80 करोड़ किग्रा मक्खन, 60 किग्रा घी व 62 लाख किग्रा आलू की खपत होती है. हल्दीराम ब्रांड के तहत लोगों को न सिर्फ भुजिया बल्कि कई प्रकार की स्वादिष्ट नमकीन, स्नैक्स, और फ़ूड प्रोडक्ट्स समेत 400 से अधिक प्रोडक्ट्स का स्वाद चखने को मिलता है. इससे आप हल्दीराम की लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं.
हल्दीराम के विवाद (Haldiram’s Controversy) –
साल 2015 में कंपनी का बुरा वक़्त तब आया, जब संयुक्त राज्य अमेरिका में फूड एंड ड्रग विभाग द्वारा इसके उत्पादो में कीटनाशक की अधिक मात्रा होने के कारण इसे अपने देश में बेन कर दिया गया. इस प्रकार इस वक़्त कंपनी की छवि धूमिल हुई, परंतु बाद में एक व्यापक निरीक्षण के बाद महाराष्ट्र शासन द्वारा कंपनी को क्लीन चिट दी गई. इसके लिए कंपनी के विभिन्न उत्पादों का परीक्षण किया गया और पाया गया, कि इसमें सभी उत्पाद सीमा के अंदर है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है.
हल्दीराम प्रोडक्टस की मार्केटिंग (Haldiram’s Products Marketing)–
हल्दीराम हिंदुस्तान का एक बहुत बड़ा ब्रांड है, ये अपने प्रोडक्टस की मार्केटिंग के लिए ट्रेडीशनल तरीके ही उपयोग करता है. आपको हल्दीराम के प्रोडक्टस विभिन्न बेकरी और रीटेल स्टोर पर आसानी से मिलते है. इसके अलावा हल्दीराम खुद को मार्केटिंग के आधुनिक तरीको से लेस करते हुये अपने प्रोडक्टस को ऑनलाइन भी उपलब्ध करवाता है. इसके अलावा इस कंपनी के प्रॉडक्ट की कीमत भी अन्य कंपनी की तुलना में कम है. आप विभिन्न होर्डिंग, बैनर और एडवरटाइजिंग के जरिये हल्दीराम का विज्ञापन आसानी से देख सकते है. परंतु हम यह बात भी यकीन से कह सकते है, कि आधुनिक भारत में हल्दीराम एक बहुत बड़ा नाम है, जिसे हर कोई जानता है.
हल्दीराम का रेवेन्यू / मूल्यांकन (Haldiram’s Revenue or Haldiram valuation) –
साल 2018 में हल्दीराम ने अपने रेवेन्यू में 13 प्रतिशत की वृद्धि कर इस बार 4000 करोड़ के आकडे को पार किया है. हल्दीराम कंपनी तीन विभिन्न क्षेत्रों में अपना व्यापार करती है, जिसमें हल्दीराम स्नेक एंड एथनिक फूड, नागपूर बेस्ड हल्दीराम फूड इंटरनेशनल और हल्दीराम भुजिया वाला शामिल है, इन तीनों क्षेत्रों के क्रमशः रेवेन्यू 2136 करोड़, 1613 करोड़ और 298 करोड़ है. इस तरह से यह आकडे यह प्रदर्शित करते है, कि अच्छा भारतीय खाना विदेशी कंपनियो को पछाड़ देता है.
इसके अलावा अन्य कई विशेषज्ञो के मुताबिक रीटेल व्यापार में हल्दीराम का लगभग 5000 करोड़ से ज्यादा का व्यापार है. इतने वर्षों की लागत सेवा के बाद हल्दीराम ने अपना एक स्टेंडर सेट किया है. जब कंपनी के द्वारा रेस्टोरेंट कि शुरुआत की गई थी, तब इसके रेवेन्यू का 80 प्रतिशत पैक फूड से ही आता था. परंतु हल्दीराम ने इस क्षेत्र में भी कई देशी और विदेशी कंपनीस को पीछे छोड़ते हुये स्वयं को स्थापित किया.
आज हल्दीराम जैसी कंपनीयां युवाओं के लिए उदाहरण है, कि कैसे एक शुरुआत करके खुद को सेट किया जा सकता है. और पहले तो फिर भी मार्केटिंग के आधुनिक तरीके उपलब्ध नहीं थे, लोगो तक पंहुचना और उन तक अपनी बात पंहुचाना आसान नहीं था, परंतु आज के आधुनिक युग में सब संभव है. अगर युवा चाहे, तो बहुत कम समय में अधिक मेहनत करके खुद को स्थापित कर सकते है.
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आप हल्दीराम के बारे में क्या सोचते हैं?
हल्दीराम हिंदुस्तान का एक बहुत बड़ा ब्रांड है, ये अपने प्रोडक्टस की मार्केटिंग के लिए ट्रेडीशनल तरीके ही उपयोग करता है. आपको हल्दीराम के प्रोडक्टस विभिन्न बेकरी और रीटेल स्टोर पर आसानी से मिलते है. इसके अलावा हल्दीराम खुद को मार्केटिंग के आधुनिक तरीको से लेस करते हुये अपने प्रोडक्टस को ऑनलाइन भी उपलब्ध करवाता है.
हल्दीराम की शुरुआत कैसे हुई?
हल्दीराम के बिना मानो ऐसा लगता हो जैसे कुछ अधूरा सा पीछे छूट गया हो। हल्दीराम की शुरुआत वास्तव में 'हल्दीराम' के रूप में नहीं बल्कि बीकानेर की एक दुकान 'भुजियावाले' के नाम से शुरू हुई थी। साल 1937 की बात है, अभी आजादी को भी 10 साल बाकी थे। बीकानेर के गंगाविषण जी अग्रवाल ने एक छोटे से नाश्ते की दुकान खोली थी।
हल्दीराम कंपनी में क्या क्या बनता है?
कंपनी के मुताबिक 3.8 बिलियन लीटर दूध, 80 मिलियन किलोग्राम बटर, 62 मिलियन किलोग्राम आलू और 60 मिलियन किलोग्राम शुद्ध घी हर साल रेस्टोरेंट्स में यूज किया जाता है. कंपनी के 30 तरह के नमकीन प्रोडक्ट्स मौजूदा समय में बाजार में हैं. इनमें सबसे मशहूर है आलू भुजिया.
हल्दीराम कितने साल पुरानी कंपनी है?
हल्दीराम ब्रांड (Haldiram's Brand) की नींव आज से लगभग 79 साल पहले 1937 में बीकानेर (Bikaner) में रखी गई थी.
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